पहली बार जब इस किताब को देखा तो लगा कि यह एक सामान्य धर्म से संबंधित किताब होगी जैसे की हमारे दिगंबर और श्वेतांबर संत अक्सर लिखा करते हैं, लेकिन जब पहली बार इसे पढ़ा तो मैं अंदर तक हिल गया और अंततः इस किताब ने मेरे सोचने का नजरिया बदल दिया।
पहली बार जब इस किताब को देखा तो लगा कि यह एक सामान्य धर्म से संबंधित किताब होगी जैसे की हमारे दिगंबर और श्वेतांबर संत अक्सर लिखा करते हैं, लेकिन जब पहली बार इसे पढ़ा तो मैं अंदर तक हिल गया और अंततः इस किताब ने मेरे सोचने का नजरिया बदल दिया।